कहावत है, होनहार बिरवान के,होत चीकने पात ! ये कहावत उस कलाकार पर सटीक बैठती है, जिसने मात्र ५ वर्ष की उम्र मे गांव की रामलीला के रंगमंच पर अभिनय पारी की शुरूवात करके अब तक ५० से ज्यादा टीवी सीरियल एवं ८ फिल्मों में अभिनय कर लिया है. उ.प्र. के जौनपुर जिला स्थित ग्राम/पोस्ट- ऊंचडीह में ब्राह्मण परिवार में जन्मे राकेश मिश्रा बचपन से ही मेधावी थे. १९८९ मे भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद द्वारा संचालित "विज्ञान विधि" कार्यक्रम मे तत्कालीन राज्यपाल मुहम्मद उस्मान आरिफ के हाथों पुरस्कार प्राप्त किया था, लेकिन अभिनय का शौक उन्हें मुम्बई खींच लाया. प्रस्तुत है उनके साथ हुई बात चीत के अंश..
राकेश जी आप तो मेधावी छात्र रहे हैं. गांव में इण्टर मीडिएट कालेज में अध्यापन कार्य भी किये, तो अचानक आपका रूख अभिनय की तरफ कैसै हो गया ?
बहुत अच्छा सवाल किया है आपनें. मैं कला के अघ्यापक के रूप में कालेज में पढा रहा था. शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से मेरी नयुक्ति होने वाली थी. इसी बीच मुझे लगा कि अब अगर मैं नौकरी में फंस गया, तो सारी जिन्दगी छात्रों को पढाता रह जाऊंगा. मेरे सपनों का क्या होगा. मै ऊपर उठ कर नाम कमाना चाहता था. पर मेरे पिताजी नहीं चाहते थे कि मैं बाहर जाऊं. एक हप्ते में मुम्बई से वापस लौट आने का बहाना बना कर मैं मायानगरी में आ गया. यहां की परिस्थितियों से अवगत हो मैनै अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत करने के साथ-साथ अभिनय के क्षेत्र में संघर्ष जारी रखा. यहां मुम्बई में मुझे आजाद मैदान (वीटी) , विक्रोली पार्कसाइट और आरएनपी पार्क भायंदर की रामलीला में अभिनय करने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसमें भरत के अभिनय के लिए मुझे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त हुआ.
आपको पहला ब्रेक कैसै मिला ?
दर असल मेरी समझ में आ गया था यह आसान नहीं है इसलिए मैने अपनी दिशा बदल दी थी. एक दिन मैं कांदीवली के मयूर सिनेमा के सामने से गुजर रहा था. मेरी निगाह वहां पर जमा हुई भीड पर पडी, देखा तो वहां शूटिंग चल रही थी. वहां हीरो- हिरोइन खडे थे, जिन्हे देखकर मैं उनसे मिलने चला गया. हीरो से काफी देर तक बातचीत किया, तो हम दोनों दोस्त बन गये. उन्होने मुझे अगली भोजपुरी फिल्म "त्रिनेत्र" में पहला ब्रेक दिया. जिसमें मैने दहेज लोभी पति की भूमिका निभाई. जिसमें मेरे अभिनय की तारीफ हुई. यह मेरे फ़िल्मी कैरियर का पहला ब्रेक रहा.
इसके बाद आपका कैरियर कैसे आगे बढा ?
त्रिनेत्र के बाद अपने मित्रों के सहयोग से मै फिल्म निर्माता बन बैठा. जिसमें मुझे नुकसान उठाना पडा. इसके बाद मैने काफी सोच समझ कर अभिनय के छेत्र में ही आगे बढने का फैसला किया और अनवरत उसी पथ पर अग्रसर हूं.
सुना है आज-कल आप टीवी सीरियल में काफी व्यस्त हैं . फिल्मों से टीवी सीरियल की तरफ आपका झुकाव कैसे हुआ ?
बिल्कुल सही सुना है आपने. आज की तरीख में टीवी सबसे ज्यादा लोकप्रिय और घर-घर मे उपलब्ध मनोरंजन का सबसे बडा साधन है. टीवी शो में किये गये काम जल्दी ही दर्शकों के सामने होता है. जबकि फिल्मों मे किये गये काम फिल्म की रिलीज के बाद ही देखने को मिलते है. एक दिन मेरे एक मित्र ने बताया कि एक प्रोडक्सन हाउस मे धार्मिक सीरियल "संकट मोचन हनुमान" का निर्माण हो रहा है. ट्राई करो, आप उसके लिए फिट हो. आफिस में जाकर मिल लो. मैं वहां गया, तो कास्टिंग वालों ने पहले मुझे नकार दिया. फिर थोडी बात-चीत के बाद मेरी कास्टिंग कर दी. मैने एग्रीमेन्ट साइन कर दिया और शूटिंग के लिए रवाना हो गये. उस समय बडी उत्सुकता थी टीवी सीरियल में काम करने की. वहां जाकर मैने सीता स्वंयवर में महाराजा जनक के उद्घोषक की भूमिका निभाया एवं पूरे सीरियल मे ६ अलग-अलग किरदार निभाये. यहीं से शुरू हो गया टीवी स्क्रीन पर अभिनय का सिलसिला, जो अनवरत जारी है.
राकेश जी आज के दौर की फिल्मों एवं टीवी सीरियल के बारे में आपके क्या विचार हैं ?
देखिये समय के साथ सब कुछ बदल जाता है और वही हो रहा है. जीवन चक्र चल रहा है जो आज ऊपर है कल नीचे जायेगा, जो नीचे है वो ऊपर आयेगा. यही प्रकृति का नियम है. भारतीय सिनेमा में आज कल पश्चिमी सभ्यता हाबी है. नग्नता, फूहडता हिंसा को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना फिल्मकारों की आदत बन गयी है. एक समय था जब भारतीय फिल्मकार सामाजिक फिल्मों का निर्माण कर समाज को सुधारने का कार्य करते थे. संगीतकार कर्णप्रिय संगीत दिया करते थे. जबकि आज के संगीत में होर हल्ला के अलावा कुछ नहीं होता.
अब आप अपनी आनेवाली फिल्मों और टीवी सीरियल के बारे बताइए जिनमें आप काम कर रहे हैं ?
मैने अब तक हिन्दी , भोजपुरी एवं पंजाबी फिल्मों में काम किया है, जिनमें त्रिनेत्र (निर्माता: प्रतिमा डी मिश्रा, निर्देशक: शाद कुमार) , एक लैला तीन छैला (निर्माता:मुकेश सोनी, निर्देशक: शाद कुमार ),ठोंक देब (निर्माता: बब्लू सिंह, निर्देशक: अजय गुप्ता), देलही टू लाहौर (निर्माता: विजय खेपर ), हिन्दी फिल्म: मेनु एक लडकी चाहिए (निर्देशक:अभिशेखधारीवाल) आदि हैं. मेरी आने वाली फिल्में हैं, भइल तोहरा से प्यार, आई लव यूं (निर्माता:धर्मेन्द्र मौर्य, निर्देशक: शाद कुमार), पटना से पाकिस्तान (निर्माता:अनन्जय, लेखक,निर्देशक:सन्तोष मिश्रा) इसके अलावा प्रसारित हो रहे टीवी सीरियल : हम हैं ना (सोनी टीवी) में चौबे जी की भूमिका कर रहा हूं. ये शादी है या सौदा (डी डी १) में डॉक्टर पट्टू का रोल निभा रहा हूं. इसके अलावां डोली अरमानों की ( जी टीवी), ये रिस्ता क्या कहलाता है (स्टार प्लस), सावधान इण्डिया (लाइफ ओके), अजब गजब घर जमाई (बिग मैजिक), सिंहासन बतीसी (सोनीपल), सड्डा हक (बिग मैजिक), दिया और बाती(स्टार प्लस), बालिका बधू (स्टार प्लस), साथिया (स्टार प्लस), महाराणा प्रताप (सोनी टीवी), जोधा अकबर (जी टीवी),देवों के देव महादेव (लाइफ ओके),अदालत (सोनी टीवी) में अभिनय कर रहा हूं.
राकेश जी आपको राज्यपाल के हाथों जो पुरस्कार मिल चुका है, उस पर प्रकाश डालें ?
यह बात उन दिनों की है जब मैं ९वीं में पढता था उसी समय रेडियो पर "विज्ञान विधि" धारावाहिक आता था, जिसमें सामान्य ज्ञान और विज्ञान की ही चर्चा होती थी. मैने प्रसारित हो रही कडियों का नोट बना लिया. कार्यक्रम की अन्तिम कडी में प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. मैंने उसमें भाग लिया. कुछ दिनों बाद डाक विभाग के पोस्टमैन से "भारत सरकार सेवार्थ" का स्टैम्प लगा एक लिफाफा प्राप्त हुआ, जिसमें भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद(सचिवालय) न्यू महरौली मार्ग नई दिल्ली की तरफ से मुझे १३ नवम्बर १९८९ को लखनऊं के गन्ना संस्थान में राज्यपाल मुहम्मद उस्मान आरिफ के हाथों पुरस्कार प्राप्त करने के लिए आमन्त्रित किया गया था. यह मेरे प्रारम्भिक दौर की सबसे बड़ी कामयाबी रही.
आज के दौर के फिल्म एवं टीवी निर्माताओं से आप क्या कहना चाहेंगे ?
मै सबसे पहले उनका आभार ब्यक्त करता हूं कि हमारे दर्शकों के लिए इतना अच्छा कार्यक्रम बनाते हैं. सबका मनोरंजन करते हैं. कितनों का घर चलाते हैं. उनसे निवेदन करता हूं साफ सुथरी सामाजिक फिल्में बनायें. बिगडती हुई सामाजिक ब्यवस्था को अपने फिल्मों के माध्यम से सन्देश देकर लोगों को जागृत करें. सेक्स और हिंसा का प्रदर्शन फिल्मों मे न दिखायें, तो बेहतर रहेगा.
राकेशजी अपनें दर्शकों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे ?
दर्शक भगवान के रूप हैं. जब तक उनकी कृपा कलाकारों पर नहीं होती, तब तक कोई भी कलाकार नाम नहीं कमा सकता. हम अपने दर्शकों से विनती करते हैं कि सदैव मुझ पर अपना आशिर्वाद बनाये रखें. हम उनके मनोरंजन के लिए फिल्मों एवं विभिन्न चैनलों पर सदैव उपस्थित होते रहेंगे.
सूना है कि आप लेखक और कवि भी हैं, इस बारे में कुछ बताना चाहेंगे ?
सही बात है. मैने बहुत सारी कविताएं लिखी हैं. भजन लिखे हैं. फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं. फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखता हूं. मेरी लेखनी रिश्तों, समस्याओं एवं सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित होती है. मेरी लिखी हुई फिल्मों में भरपूर मनोरंजन के साथ -साथ प्रेरक संदेश भी होते है, जो सीधे दर्शकों के दिल को छूते हैं. मेरी कविताओं में भी संदेश होता है लेकिन व्यावसायिक व्यस्तता के कारण कवि सम्मेलनों में भाग नहीं ले पाता.
सूटिंग के दौरान की कोई घटना या कोई रोचक प्रसंग बताना चाहेंगे ?
हां-हां क्यों नहीं...मैं एक पंजाबी फिल्म कर रहा था " डेलही टू लाहौर" उसमें दीपक शिर्के (गैण्डा स्वामी, फिल्म:तिरंगा फेम) काम कर रहे थे. मुझे उन्हीं के साथ एक्टिंग करनी थी. उनको अपने साथ देख कर मुझे बडा अच्छा लग रहा था. उन्होने एक पिस्तौल ले रखी थी. जब मैनै उनकी पिस्तौल अपने हाथों में उठाया, हॉथ से फिसल कर जमीन पर गिर गयी, क्यों, कि मैं उसे हल्का समझ कर उठा रहा था जबकि वो बहुत भारी थी. उसके गिरते ही मई दर कर काँप उठा, लेकिन भगवान का शुक्र है कि कोई अनहोनी नहीं हुई. इसके अलावा दिनेश लाल यादव (निरहुआ) के साथ भोजपुरी फिल्म पटना से पाकिस्तान में काम करके बडा मजा आया. दिनेश जी कमाल के एक्टर हैं. साथ ही बहुत सहयोगी व संस्कारिक हैं. इस फिल्म में मशहूर लेखक सन्तोष मिश्रा ने कमाल का निर्देशन किया है. इसके अलावा टीवी सीरियल गुस्ताख दिल में "गोपाल" की भूमिका करने में बडा आनन्द आया. डीडी १ पर प्रसारित हो रहे कॉमेडी शो घण्टेश्वर प्रसाद घंण्टेवाले में "छर्रा" का रोल निभाने में बहुत खुशी हुई.
फिल्मों में टेक्नेशियन और साथी कलाकारों के साथ आपका कैसा अनुभव रहा ?
बहुत ही अच्छा. मुझे फिल्म में लाने का श्रेय मेरे मित्र धर्मेश मिश्रा एवं फिल्म निर्देशक शाद कुमार जी को जाता है, जिन्होंने मुझे पहला ब्रेक भोजपुरी फिल्म "त्रिनेत्र" में दिया. इसके बाद प्रोडक्सन मैनैजर अजय सिंह "अज्जू" के सहयोग से मुझे कई फिल्में मिलीं. फिल्म डाइरेक्टर जिग्नेश शाह के सहयोग से हिन्दी फिल्म में काम करने का मौका मिला. फिल्म डाइरेक्टर अजय गुप्ता के निर्देशन में पवन सिंह के साथ "ठोंक देब" में काम करना सुखद रहा. फिल्म डाइरेक्टर शाद कुमार के निर्देशन में मैंने " त्रिनेत्र " "एक लैला तीन छैला " "भइल तोहरा से प्यार और आई लव यूं में काम किया.
आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे ?
अपने माता पिता को. कहा गया है, "बाढें पूत पिता के धर्मे" पुत्र का विकास उसके माता पिता के धर्म कर्म और आशिर्वाद से होता है. पूर्वजों के पुण्य प्रताप से होता है.
कर्म और भाग्य में आप किसे बडा मानते हैं ?
कर्म प्रधान होता है. "कर्म प्रधान विश्व करि राखा " किन्तु भाग्य उससे भी बडा "भाग्यम् फलति सर्वदा, नहि विद्या नहि बाहुबल" ।
राकेश जी आप तो मेधावी छात्र रहे हैं. गांव में इण्टर मीडिएट कालेज में अध्यापन कार्य भी किये, तो अचानक आपका रूख अभिनय की तरफ कैसै हो गया ?
बहुत अच्छा सवाल किया है आपनें. मैं कला के अघ्यापक के रूप में कालेज में पढा रहा था. शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से मेरी नयुक्ति होने वाली थी. इसी बीच मुझे लगा कि अब अगर मैं नौकरी में फंस गया, तो सारी जिन्दगी छात्रों को पढाता रह जाऊंगा. मेरे सपनों का क्या होगा. मै ऊपर उठ कर नाम कमाना चाहता था. पर मेरे पिताजी नहीं चाहते थे कि मैं बाहर जाऊं. एक हप्ते में मुम्बई से वापस लौट आने का बहाना बना कर मैं मायानगरी में आ गया. यहां की परिस्थितियों से अवगत हो मैनै अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत करने के साथ-साथ अभिनय के क्षेत्र में संघर्ष जारी रखा. यहां मुम्बई में मुझे आजाद मैदान (वीटी) , विक्रोली पार्कसाइट और आरएनपी पार्क भायंदर की रामलीला में अभिनय करने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसमें भरत के अभिनय के लिए मुझे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त हुआ.
आपको पहला ब्रेक कैसै मिला ?
दर असल मेरी समझ में आ गया था यह आसान नहीं है इसलिए मैने अपनी दिशा बदल दी थी. एक दिन मैं कांदीवली के मयूर सिनेमा के सामने से गुजर रहा था. मेरी निगाह वहां पर जमा हुई भीड पर पडी, देखा तो वहां शूटिंग चल रही थी. वहां हीरो- हिरोइन खडे थे, जिन्हे देखकर मैं उनसे मिलने चला गया. हीरो से काफी देर तक बातचीत किया, तो हम दोनों दोस्त बन गये. उन्होने मुझे अगली भोजपुरी फिल्म "त्रिनेत्र" में पहला ब्रेक दिया. जिसमें मैने दहेज लोभी पति की भूमिका निभाई. जिसमें मेरे अभिनय की तारीफ हुई. यह मेरे फ़िल्मी कैरियर का पहला ब्रेक रहा.
इसके बाद आपका कैरियर कैसे आगे बढा ?
त्रिनेत्र के बाद अपने मित्रों के सहयोग से मै फिल्म निर्माता बन बैठा. जिसमें मुझे नुकसान उठाना पडा. इसके बाद मैने काफी सोच समझ कर अभिनय के छेत्र में ही आगे बढने का फैसला किया और अनवरत उसी पथ पर अग्रसर हूं.
सुना है आज-कल आप टीवी सीरियल में काफी व्यस्त हैं . फिल्मों से टीवी सीरियल की तरफ आपका झुकाव कैसे हुआ ?
बिल्कुल सही सुना है आपने. आज की तरीख में टीवी सबसे ज्यादा लोकप्रिय और घर-घर मे उपलब्ध मनोरंजन का सबसे बडा साधन है. टीवी शो में किये गये काम जल्दी ही दर्शकों के सामने होता है. जबकि फिल्मों मे किये गये काम फिल्म की रिलीज के बाद ही देखने को मिलते है. एक दिन मेरे एक मित्र ने बताया कि एक प्रोडक्सन हाउस मे धार्मिक सीरियल "संकट मोचन हनुमान" का निर्माण हो रहा है. ट्राई करो, आप उसके लिए फिट हो. आफिस में जाकर मिल लो. मैं वहां गया, तो कास्टिंग वालों ने पहले मुझे नकार दिया. फिर थोडी बात-चीत के बाद मेरी कास्टिंग कर दी. मैने एग्रीमेन्ट साइन कर दिया और शूटिंग के लिए रवाना हो गये. उस समय बडी उत्सुकता थी टीवी सीरियल में काम करने की. वहां जाकर मैने सीता स्वंयवर में महाराजा जनक के उद्घोषक की भूमिका निभाया एवं पूरे सीरियल मे ६ अलग-अलग किरदार निभाये. यहीं से शुरू हो गया टीवी स्क्रीन पर अभिनय का सिलसिला, जो अनवरत जारी है.
राकेश जी आज के दौर की फिल्मों एवं टीवी सीरियल के बारे में आपके क्या विचार हैं ?
देखिये समय के साथ सब कुछ बदल जाता है और वही हो रहा है. जीवन चक्र चल रहा है जो आज ऊपर है कल नीचे जायेगा, जो नीचे है वो ऊपर आयेगा. यही प्रकृति का नियम है. भारतीय सिनेमा में आज कल पश्चिमी सभ्यता हाबी है. नग्नता, फूहडता हिंसा को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना फिल्मकारों की आदत बन गयी है. एक समय था जब भारतीय फिल्मकार सामाजिक फिल्मों का निर्माण कर समाज को सुधारने का कार्य करते थे. संगीतकार कर्णप्रिय संगीत दिया करते थे. जबकि आज के संगीत में होर हल्ला के अलावा कुछ नहीं होता.
अब आप अपनी आनेवाली फिल्मों और टीवी सीरियल के बारे बताइए जिनमें आप काम कर रहे हैं ?
मैने अब तक हिन्दी , भोजपुरी एवं पंजाबी फिल्मों में काम किया है, जिनमें त्रिनेत्र (निर्माता: प्रतिमा डी मिश्रा, निर्देशक: शाद कुमार) , एक लैला तीन छैला (निर्माता:मुकेश सोनी, निर्देशक: शाद कुमार ),ठोंक देब (निर्माता: बब्लू सिंह, निर्देशक: अजय गुप्ता), देलही टू लाहौर (निर्माता: विजय खेपर ), हिन्दी फिल्म: मेनु एक लडकी चाहिए (निर्देशक:अभिशेखधारीवाल) आदि हैं. मेरी आने वाली फिल्में हैं, भइल तोहरा से प्यार, आई लव यूं (निर्माता:धर्मेन्द्र मौर्य, निर्देशक: शाद कुमार), पटना से पाकिस्तान (निर्माता:अनन्जय, लेखक,निर्देशक:सन्तोष मिश्रा) इसके अलावा प्रसारित हो रहे टीवी सीरियल : हम हैं ना (सोनी टीवी) में चौबे जी की भूमिका कर रहा हूं. ये शादी है या सौदा (डी डी १) में डॉक्टर पट्टू का रोल निभा रहा हूं. इसके अलावां डोली अरमानों की ( जी टीवी), ये रिस्ता क्या कहलाता है (स्टार प्लस), सावधान इण्डिया (लाइफ ओके), अजब गजब घर जमाई (बिग मैजिक), सिंहासन बतीसी (सोनीपल), सड्डा हक (बिग मैजिक), दिया और बाती(स्टार प्लस), बालिका बधू (स्टार प्लस), साथिया (स्टार प्लस), महाराणा प्रताप (सोनी टीवी), जोधा अकबर (जी टीवी),देवों के देव महादेव (लाइफ ओके),अदालत (सोनी टीवी) में अभिनय कर रहा हूं.
राकेश जी आपको राज्यपाल के हाथों जो पुरस्कार मिल चुका है, उस पर प्रकाश डालें ?
यह बात उन दिनों की है जब मैं ९वीं में पढता था उसी समय रेडियो पर "विज्ञान विधि" धारावाहिक आता था, जिसमें सामान्य ज्ञान और विज्ञान की ही चर्चा होती थी. मैने प्रसारित हो रही कडियों का नोट बना लिया. कार्यक्रम की अन्तिम कडी में प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. मैंने उसमें भाग लिया. कुछ दिनों बाद डाक विभाग के पोस्टमैन से "भारत सरकार सेवार्थ" का स्टैम्प लगा एक लिफाफा प्राप्त हुआ, जिसमें भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद(सचिवालय) न्यू महरौली मार्ग नई दिल्ली की तरफ से मुझे १३ नवम्बर १९८९ को लखनऊं के गन्ना संस्थान में राज्यपाल मुहम्मद उस्मान आरिफ के हाथों पुरस्कार प्राप्त करने के लिए आमन्त्रित किया गया था. यह मेरे प्रारम्भिक दौर की सबसे बड़ी कामयाबी रही.
आज के दौर के फिल्म एवं टीवी निर्माताओं से आप क्या कहना चाहेंगे ?
मै सबसे पहले उनका आभार ब्यक्त करता हूं कि हमारे दर्शकों के लिए इतना अच्छा कार्यक्रम बनाते हैं. सबका मनोरंजन करते हैं. कितनों का घर चलाते हैं. उनसे निवेदन करता हूं साफ सुथरी सामाजिक फिल्में बनायें. बिगडती हुई सामाजिक ब्यवस्था को अपने फिल्मों के माध्यम से सन्देश देकर लोगों को जागृत करें. सेक्स और हिंसा का प्रदर्शन फिल्मों मे न दिखायें, तो बेहतर रहेगा.
राकेशजी अपनें दर्शकों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे ?
दर्शक भगवान के रूप हैं. जब तक उनकी कृपा कलाकारों पर नहीं होती, तब तक कोई भी कलाकार नाम नहीं कमा सकता. हम अपने दर्शकों से विनती करते हैं कि सदैव मुझ पर अपना आशिर्वाद बनाये रखें. हम उनके मनोरंजन के लिए फिल्मों एवं विभिन्न चैनलों पर सदैव उपस्थित होते रहेंगे.
सूना है कि आप लेखक और कवि भी हैं, इस बारे में कुछ बताना चाहेंगे ?
सही बात है. मैने बहुत सारी कविताएं लिखी हैं. भजन लिखे हैं. फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं. फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखता हूं. मेरी लेखनी रिश्तों, समस्याओं एवं सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित होती है. मेरी लिखी हुई फिल्मों में भरपूर मनोरंजन के साथ -साथ प्रेरक संदेश भी होते है, जो सीधे दर्शकों के दिल को छूते हैं. मेरी कविताओं में भी संदेश होता है लेकिन व्यावसायिक व्यस्तता के कारण कवि सम्मेलनों में भाग नहीं ले पाता.
सूटिंग के दौरान की कोई घटना या कोई रोचक प्रसंग बताना चाहेंगे ?
हां-हां क्यों नहीं...मैं एक पंजाबी फिल्म कर रहा था " डेलही टू लाहौर" उसमें दीपक शिर्के (गैण्डा स्वामी, फिल्म:तिरंगा फेम) काम कर रहे थे. मुझे उन्हीं के साथ एक्टिंग करनी थी. उनको अपने साथ देख कर मुझे बडा अच्छा लग रहा था. उन्होने एक पिस्तौल ले रखी थी. जब मैनै उनकी पिस्तौल अपने हाथों में उठाया, हॉथ से फिसल कर जमीन पर गिर गयी, क्यों, कि मैं उसे हल्का समझ कर उठा रहा था जबकि वो बहुत भारी थी. उसके गिरते ही मई दर कर काँप उठा, लेकिन भगवान का शुक्र है कि कोई अनहोनी नहीं हुई. इसके अलावा दिनेश लाल यादव (निरहुआ) के साथ भोजपुरी फिल्म पटना से पाकिस्तान में काम करके बडा मजा आया. दिनेश जी कमाल के एक्टर हैं. साथ ही बहुत सहयोगी व संस्कारिक हैं. इस फिल्म में मशहूर लेखक सन्तोष मिश्रा ने कमाल का निर्देशन किया है. इसके अलावा टीवी सीरियल गुस्ताख दिल में "गोपाल" की भूमिका करने में बडा आनन्द आया. डीडी १ पर प्रसारित हो रहे कॉमेडी शो घण्टेश्वर प्रसाद घंण्टेवाले में "छर्रा" का रोल निभाने में बहुत खुशी हुई.
फिल्मों में टेक्नेशियन और साथी कलाकारों के साथ आपका कैसा अनुभव रहा ?
बहुत ही अच्छा. मुझे फिल्म में लाने का श्रेय मेरे मित्र धर्मेश मिश्रा एवं फिल्म निर्देशक शाद कुमार जी को जाता है, जिन्होंने मुझे पहला ब्रेक भोजपुरी फिल्म "त्रिनेत्र" में दिया. इसके बाद प्रोडक्सन मैनैजर अजय सिंह "अज्जू" के सहयोग से मुझे कई फिल्में मिलीं. फिल्म डाइरेक्टर जिग्नेश शाह के सहयोग से हिन्दी फिल्म में काम करने का मौका मिला. फिल्म डाइरेक्टर अजय गुप्ता के निर्देशन में पवन सिंह के साथ "ठोंक देब" में काम करना सुखद रहा. फिल्म डाइरेक्टर शाद कुमार के निर्देशन में मैंने " त्रिनेत्र " "एक लैला तीन छैला " "भइल तोहरा से प्यार और आई लव यूं में काम किया.
आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे ?
अपने माता पिता को. कहा गया है, "बाढें पूत पिता के धर्मे" पुत्र का विकास उसके माता पिता के धर्म कर्म और आशिर्वाद से होता है. पूर्वजों के पुण्य प्रताप से होता है.
कर्म और भाग्य में आप किसे बडा मानते हैं ?
कर्म प्रधान होता है. "कर्म प्रधान विश्व करि राखा " किन्तु भाग्य उससे भी बडा "भाग्यम् फलति सर्वदा, नहि विद्या नहि बाहुबल" ।
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