निर्माता धर्मेन्द्र मौर्या ले कर आ रहें हैं " भईल तोहरा से प्यार आइ लव यू ".
उनसे बातचीत का कुछ अंश :
आप के फ़िल्म में क्या ऐसी विषय हैं जो कि दर्शको को पसंद आएगी ?
सबसे पहले सभी दर्शको का हमारा प्रणाम। जहाँ तक रही पसंद आने वाली विषय , प्यार इक ऐसी विषय हैं जिसे कभी नापसंद किया ही नहीं जा सकता।
इस फ़िल्म में और फिल्मो से अलग हट के बात करें तो क्या हैं ?
देखिये आज जो भोजपुरी फिल्मो को लेकर बातें होती है जैसे कि भोजपुरी फिल्मों में अशलीलता चलती हैं , इसे रिक्शेवाले देखते हैं। हम उन फ़िल्म निर्माताओं निर्देशकों और फ़िल्म वितरकों से पूछना चाहते हैं कि क्या रिक्शेवाले इंसान नहीं होते हैं या उनका परिवार नहीं होता हैं या वे हमेशा नंगे घूमते हैं। अरे नहीं , कोई भाषा अशलील नहीं होती हैं भले कुछ लोग उसे गलत तरीके से पेश करें। जहाँ तक अलग की बात करें तो हर भोजपुरी भाषा को प्यार करने वाले लोगों के भावनाओं को ध्यान में रख कर यह फ़िल्म बनाई हैं इसलिए यह और फिल्मों से अलग हैं। और हमें उम्मीद हैं कि ये लोगों को खूब पसंद आएगी।
फ़िल्म समाज का आईना होता हैं तो इस आईने के माध्यम से आप समाज को क्या आईना दिखा रहें हैं ?
फ़िल्म साहित्य के अंतर्गत आता हैं और साहित्य समाज का दर्पण होता हैं। पर हम समाज को आईना दिखाने वाले कौन होते हैं क्योंकि यहाँ समाज का हर तबका चाहे वो गरीब हो या अमीर हो सब पढ़े -लिखे हैं और सब अपना भला -बुरा जानते हैं। हांलाकि हम इस फ़िल्म कि माध्यम से जो आज के भागम -दौड़ ज़िन्दगी और पैसे के चक्कर में लोग प्यार के महत्व को भूलते जा रहें हैं। उसी को दिखाया गया हैं कि आप के जीवन में प्यार का क्या महत्व हैं।
चलते-चलते क्या कहना चाहेंगे ?
हम सभी लोगों से जो भोजपुरी जानते हैं समझते हैं और भोजपुरी भाषा से प्यार करते हैं चाहे वो आई ऐ यस हो या पी सी यस हो या व्यापारी हो या मजदूर वर्ग हो। यह फ़िल्म आप लोगों के लिए बनाई हैं और आप सब इसे पुरे परिवार के साथ देखें और हमें सूचित जरूर करें कि आप को यह फ़िल्म कैसी लगी। धन्यवाद।
उनसे बातचीत का कुछ अंश :
आप के फ़िल्म में क्या ऐसी विषय हैं जो कि दर्शको को पसंद आएगी ?
सबसे पहले सभी दर्शको का हमारा प्रणाम। जहाँ तक रही पसंद आने वाली विषय , प्यार इक ऐसी विषय हैं जिसे कभी नापसंद किया ही नहीं जा सकता।
इस फ़िल्म में और फिल्मो से अलग हट के बात करें तो क्या हैं ?
देखिये आज जो भोजपुरी फिल्मो को लेकर बातें होती है जैसे कि भोजपुरी फिल्मों में अशलीलता चलती हैं , इसे रिक्शेवाले देखते हैं। हम उन फ़िल्म निर्माताओं निर्देशकों और फ़िल्म वितरकों से पूछना चाहते हैं कि क्या रिक्शेवाले इंसान नहीं होते हैं या उनका परिवार नहीं होता हैं या वे हमेशा नंगे घूमते हैं। अरे नहीं , कोई भाषा अशलील नहीं होती हैं भले कुछ लोग उसे गलत तरीके से पेश करें। जहाँ तक अलग की बात करें तो हर भोजपुरी भाषा को प्यार करने वाले लोगों के भावनाओं को ध्यान में रख कर यह फ़िल्म बनाई हैं इसलिए यह और फिल्मों से अलग हैं। और हमें उम्मीद हैं कि ये लोगों को खूब पसंद आएगी।
फ़िल्म समाज का आईना होता हैं तो इस आईने के माध्यम से आप समाज को क्या आईना दिखा रहें हैं ?
फ़िल्म साहित्य के अंतर्गत आता हैं और साहित्य समाज का दर्पण होता हैं। पर हम समाज को आईना दिखाने वाले कौन होते हैं क्योंकि यहाँ समाज का हर तबका चाहे वो गरीब हो या अमीर हो सब पढ़े -लिखे हैं और सब अपना भला -बुरा जानते हैं। हांलाकि हम इस फ़िल्म कि माध्यम से जो आज के भागम -दौड़ ज़िन्दगी और पैसे के चक्कर में लोग प्यार के महत्व को भूलते जा रहें हैं। उसी को दिखाया गया हैं कि आप के जीवन में प्यार का क्या महत्व हैं।
चलते-चलते क्या कहना चाहेंगे ?
हम सभी लोगों से जो भोजपुरी जानते हैं समझते हैं और भोजपुरी भाषा से प्यार करते हैं चाहे वो आई ऐ यस हो या पी सी यस हो या व्यापारी हो या मजदूर वर्ग हो। यह फ़िल्म आप लोगों के लिए बनाई हैं और आप सब इसे पुरे परिवार के साथ देखें और हमें सूचित जरूर करें कि आप को यह फ़िल्म कैसी लगी। धन्यवाद।

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